रविवार, 13 सितंबर 2020

संविधान की प्रस्तावना

 संविधान की प्रस्तावना में संविधान के उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से रखा गया है इस प्रस्तावना में समाजवाद, पंथनिरपेक्ष और अखंडता शब्द को 42 वें संविधान संशोधन 1976 के द्वारा जोड़ा गया।

  •  प्रस्तावना में हम भारत के लोग शब्द भारतीय संविधान को इंगित करता है।
  •  संपूर्ण प्रभुत्व शब्द से आशय है कि भारत के आंतरिक तथा  विदेशिक मामले में भारत सरकार सार्वभौमिक तथा स्वतंत्र है ।
  • समाजवादी से तात्पर्य ऐसी सरंचना जिसमें उत्पादन के मुख्य संसाधनों पर सार्वजनिक स्वामित्व या नियंत्रण के साथ संतुलित सामंजस्य हो।
  •  पंथनिरपेक्ष का अर्थ सरकार द्वारा सभी धर्मों को समान सरंक्षण वह सम्मान प्रदान करना है।
  •  लोकतंत्रात्मक गणराज्य में लोकतंत्र से आशय है कि भारत सरकार की शक्ति का स्रोत भारत की जनता है अर्थात जनता  के द्वारा स्थापित सरकार है। जबकि गणराज्य से तात्पर्य ऐसे राज्य से हैं जिसका प्रमुख राष्ट्राध्यक्ष निर्वाचित होता है।
  •  बेरुबारी मामले में 1960 के अनुसार उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि प्रस्तावना संविधान का अंग नहीं है।
  •  1967 के गोकुलनाथ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रस्तावना संविधान के किसी भी भाग की भाषा को स्पष्ट करने के लिए या कोई शब्द संदिग्ध तो हो तो उसके अर्थ को समझने के लिए प्रस्तावना का सहारा लिया जा सके।
  •  केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य में 1973 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय को उलटते हुए कहा कि प्रस्तावना संविधान का भाग है। इसी मामले के दौरान यह भी निर्णय दिया गया कि संसद के द्वारा संविधान के अनुच्छेद 368 के अधीन प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है किंतु प्रस्तावना में संविधान के बुनियादी तत्वों में संशोधन नहीं किया जा सकता है।
  •  ठाकुर दास भार्गव व जवाहरलाल नेहरू ने प्रस्तावना के संविधान की आत्मा कहा  है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपको राजस्थान पटवारी परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण जानकारी कैसे लगी?